Monday, March 20, 2017

माना कि फिर से चोट लगी पर

माना कि फिर से चोट लगी पर
तू गिरा नहीं इस बार भी
वक्ष लहुलुहान तो है पर
विश्रम्भ ने सहा ये वार भी
स्पर्धा ये तेरी तुझी से है
तुझ से ही जीत और हार भी
चित्त चिन्तित न कर नगण्य पर
विगत पर रोना बेकार ही
माना कि फिर से चोट लगी पर
तू गिरा नहीं इस बार भी

जो ताप ह्रदय को जला रहा
उसमें तपा तमक तलवार भी
अन्तरतम का कोलाहल ही
है संकल्प की हुंकार भी
जो क्रोध निर्गम ढूंढ रहा
वह लेगा हठ का आकार भी
ध्यान रहे कि युद्ध बहुत हैं
इस रण के उस पार भी
माना कि फिर से चोट लगी पर
तू गिरा नहीं इस बार भी

जग निर्मम लगता है तुझको पर
करुणा तेरा अधिकार नहीं
यह प्रबलता की जय का युग है
सिद्धांतों का बाजार नहीं
तू श्रेय के बल न जीतेगा
यहाँ निपुणता का आधार नहीं
पर ये न तेरा अंतिम लक्ष्य
यहाँ खत्म संसार नहीं
माना कि फिर से चोट लगी पर
तू गिरा नहीं इस बार भी

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